घर की मुंडेरों तक बरपा है दीवाली का सारा जश्न
कैसे हो अंदर भी चराग़ाँ मैं भी सोचूँ तू भी सोच
– असरारुल हक़ मजाज़
 
Ghar ki Munderon tak Barpa hai Diwali ka Jashn
Kaise ho andar bhi charaghaan Main bhi sochun tu bhi soch
– Asrar Ul Haq Majaz 

ए चाँद
तू किस मजहब का है
ईद भी तेरी और करवा चौथ भी तेरा

Aye chand
tu kis mazhab kya hai
Eid bhu teri aur Karva Chauth bhi tera

हर इक मक़ां में जला फिर दिया दिवाली का।
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का।
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का।
किसी के दिल को मज़ा खु़श लगा दिवाली का।
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का॥1॥
 
जहां में यारो अजब तरह का है यह त्यौहार।
किसी ने नक़द लिया और कोई करे है उधार।
खिलौने खीलों बताशों का गरम है बाजार।
हर एक दुकां में चिराग़ों की हो रही है बहार।
सभों को फ़िक्र है अब जा बजा दिवाली का॥2॥
 
खिलौने मिट्टी के घर में कोई ले आता है।
चिराग़दान कोई हड़ियां मगाता है।
सिवई गूंजा व मटरी कोई पकाता है।
दीवाली पूजे है हंस-हंस दिये जलाता है।
हर एक घर में समां छा गया दिवाली का॥3॥
 
जहां में वह जो कहाते हैं सेठ साहूकार।
दोशाला, शाल, ज़री, ताश बादले की बहार।
खिलौने खीलों, बताशों के लग रहे अम्बार।
चिराग़ जलते हैं, घर हो रहा है सब गुलज़ार।
खिला है सामने इक बाग़ सा दिवाली का॥4॥
 
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई।
पुकारते हैं कि लाला दिवाली है आई।
बताशे ले कोई बर्फ़ी किसी ने तुलवाई।
खिलौने वालों की उनसे ज्यादा बन आई।
गोया इन्हों के वां राज आ गया दिवाली का॥5॥
 
कोई कहे है ‘इस हाथी का बोलो क्या लोगे’।
‘यह दो जो घोड़े हैं इनका भी क्या भला लोगे’।
कोई कहे हैं कि इस बैल का टका लोगे।
वह कहता है कि ‘मियां जाओ बैठो क्या लोगे’।
टके को ले लो कोई चौघड़ा दिवाली का॥6॥
 
कोई खड़ा फ़कत इक चौघड़ा चुकाने को।
कोई जो गुजरी का पैसा लगा बताने को।
वह कहता है कि मैं बेचूंगा पांच आने को।
यह पैसा रक्खो तुम अपने अफ़ीम खाने को।
कि जिसकी लहर में देखो मज़ा दिवाली का॥7॥
 
हठा है मोर पे लड़का किसी का या चेला।
कोई गिलहरी के नौ दाम दे हैं या धेला।
वह धेला फेंक के इसका कुम्हार अलबेला।
खिलौना छीन के कहता है ‘चल मुझे दे ला’।
तू ही तो आया है गाहक बड़ा दिवाली का॥8॥
 
कबूतरों का किसी ने लिया ने बेल चुका।
कोई छदाम को रखता है बहू बेल चुका।
वह कहता है कि ”मियां लो जी“ इसका मेल चुका।
यह धुन है दिल में तो लड़का तुम्हारा खेल चुका।
चबैना लड़के को दो तुम दिला दिवाली का॥9॥
 
इधर यह धूम, उधर जोश पर जुये खाने।
क़िमार बाज़ लगें जा बजा से वां आने।
अशर्फ़ी , कौड़ी व पैसे रुपे लगे आने।
तमाम जुआरी हुए मालो ज़र के दीवाने।
सभों के सर पे चढ़ा भूत सा दिवाली का॥10॥
 
सिर्फ़ हराम की कौड़ी का जिन का है ब्यौपार।
उन्होंने खाया है उस दिन के वास्ते ही उधार।
कहे हैं हंस के क़र्जख़्वाह से हर इक इक बार।
”दिवाली आई है सब दे दिलायेंगे ऐ यार“।
”खुदा के फ़ज़्ल से है आसरा दिवाली का“॥11॥
 
हुआ मिलाप सभों में गई दिलों की रूठ।
हर एक हाथ लगे दावं आने सच और झूठ।
चढ़ा है मीर बिसातों के मुंह पे रंग अनूठ।
सुल्लियां फेंकते हैं और कहे है नक्की मूठ।
कि जिसके शोर से घर भर गया दिवाली का।12॥
 
मकान लीप के ठिलिया जो कोरी रखवाई।
जला चिराग़ को, कौड़ी वह जल्द झनकाई।
असल ज्वारी थे उनमें तो जान सी आई।
खुशी से कूद उछल कर पुकारे ‘ओ भाई।
”शगुन पहले करो तुम ज़रा दिवाली का“॥13॥
 
शगुन की बाजी लगी पहली बार गंडे की।
फिर उससे बढ़के लगी तीन चार गंडे की।
फिरी जो ऐसी तरह बार बार गंडे की।
तो आगे लगने लगी फिर हज़ार गंडे की।
कमाल निर्ख़ लगा फिर तो आ दिवाली का॥14॥
 
किसी ने घर की हवेली गिरू रखा, हारी।
जो कुछ थी जिंस मयस्सर बना बना हारी।
किसी ने चीज़ किसी की चुरा छुपा हारी।
किसी ने गठरी पड़ोसिन की अपनी ला हारी।
यह हार जीत का चर्चा पड़ा दिवाली का॥15॥
 
किसी को दांव पे ला नक्कीमूठ ने मारा।
किसी के घर पे धरा, सोख्ते ने अंगारा।
किसी को नर्द ने चोपड़ के कर दिया ज़ारा।
लंगोटी बांध के बैठा इज़ार तक हारा।
यह शोर आ के मचा जा बजा दिवाली का॥16॥
 
किसी की जोरू कहे हे पुकार ”दे भडु़ए“।
बहू की नौगरी बेटे के हाथ के खडु़ए।
जो घर में आवे तो सब मिल कहे हैं सौ घडु़ए।
निकल तू यां से मेरा काम यां नहीं भडु़ए।
खुदा ने तुझको तो शुहदा किया दिवाली का॥17॥
 
वह उसके झोंटे पकड़ कर कहे है मारूंगा।
तेरा जो गहना है सब तार-तार उतारूंगा।
हवेली अपनी तो एक दाव पर मैं हारूंगा।
यह सब तो हारा हूं खन्छी तुझे भी हारूंगा।
चढ़ा है मुझको भी अब तो नशा दिवाली का॥18॥
 
तुझे ख़बर नहीं खन्दी यह लत वह प्यारी है।
किसी ज़माने में आगे हुआ जो जुआरी है।
तो उसने जोरू की नथ और इज़ार उतारी है।
इज़ार क्या है, कि जोरू तलक भी हारी है।
सुना यह तूने नहीं माजरा दिवाली का॥19॥
 
जहां में यह जो दिवाली की सैर होती है।
जो ज़र से होती है और ज़र बगै़र होती है।
जो हारे उनपे ख़राबी की फै़र होती है।
और उनमें आन के जिन जिन की खैर होती है।
तो आड़े आता है उनके दिया दिवाली का॥20॥
 
यह बातें सच हैं, न झूठ इनको जानियो यारो।
नसीहतें हैं, इन्हें दिल से मानियो यारो।
जहां को जाओ यह किस्सा बखानियो यारो।
जो जुआरी हो न बुरा उसका मानियो यारो।
‘नज़ीर’ आप भी है जुआरिया दिवाली का॥21॥
प्रताप सोमवंशी
रूमी
हफ़ीज़ जालंधरी
साकी फारूकी
मुज़फ़्फ़र वारसी
खूब चंद्र
सुर्यकांत त्रिपाठी
नज़ीर काज़मी
उफुक लखनवी
जितेन्द्र मोहन सिंगार रहबर